डा. हिमेंद्र बाली ‘हिम’, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। समाज संस्कति और सभ्यता का समन्वित स्वरूप है। संस्कृति मानव चिंतन का वह प्रवाह है, जो युगों से पीढ़ी दर पीढ़ी धरोहर स्वरूप बहता रहा है। संस्कृति संस्कारों की वह बपौती है, जो संस्कारों से संवरती है और पूरे समाज को एक सूत्र में पिरोकर रखती है। सभ्यता मानव का बाहरी आवरण है, जो संस्कृति की प्राण वायु से जीवित रहती है। आज के द्रुतगामी भौतिक जगत में सामाजिक विघटन की विद्रूपता संस्कति के अवसान की आहट है। आज के तथाकथित विकासवादी…
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अकेला सफर (लघु कथा)
डा हिमेन्द्र बाली “हिम”, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। दरवाजा खोला तो बेटा बहू सामने थे। पिता जी नौकर के साथ आत्मीय संवाद में मशगूल थे। चेहरे पर बरसों बाद चमक लौट आई थी। देखो बेटा! मजबूरी भी आदमी को क्या बना देती है। कभी इसके बाप दादाओं के बास सैकड़ों बीघा जमीन थी। कह रहा है कि हमारी जमीदारी मशहूर थी। ठाकुर लोग भी कतराते थे। समय का फेर है, आज न जमींदारी रही न रुतबा…..। पिता कहे जा रहे थे और बेटा बहू को उनका नौकर के साथ ऐसी…