कुँवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
एक गुरु अपने शिष्यों को प्रत्यक्ष उदाहरणों के माध्यम से ज्ञान की बातें सिखाया करते थे। एक बार उनका एक प्रिय शिष्य उनसे देर रात तक बातें करता रहा। शिष्य जब अपने कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों से उतरने को हुआ तो सीढ़ियों पर अंधकार देखकर वह घबरा गया। अंधेरा इतना ज्यादा था कि हाथ को हाथ दिखाई नहीं दे रहा था। सी़ढिया उतारना तो बहुत बड़ी बात थी। शिष्य गुरु से बोला-गुरुजी! अंधेरे के कारण रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है, ऐसे में सीढ़ियाँ कैेसे उतरूँगा? गुरु जी! अंधेरे के कारण रास्ता नहीं सूझ रहा।
शिष्य की बात सुनकर गुरू जी ने एक दीपक जलाकर शिष्य के हाथ में दे दिया। शिष्य दीपक लेकर जैसे ही पहली सीढ़ी नीचे उतरा, वैसे ही गुरू ने दीपक बुझा दिया। दीपक बुझते ही फिर चारों ओर गहरा अंधेरा फैल गया। यह देखकर शिष्य हैरानी से बोला-गुरू जी! अचानक दीपक क्यों बुझा दिया? अभी तो मैं पहली सीढ़ी पर ही अटका हुआ हूँ। शिष्य की बात सुनकर गुरू बोले-पुत्र! जब एक सीढ़ी पर पाँव रख दिया तो आगे भी सीढ़ियाँ मिलती जायेगी। मैं तुम्हें राह दिखा दी है। दूसरे के दीपक से जो प्रकाश मिलता है, वह असली और स्थाई प्रकाश नहीं होता। असली प्रकाश तो मनुष्य अन्दर ही स्वयं उत्पन्न होता है, जो उसे अंधकार मे चलने से प्राप्त होता है। वह रोशनी दीपक से बेहतर व स्थाई होता है। यह नवीन प्रकाश मार्ग ही नहीं, अपितु आपके अन्तमर्मन के सारे चझुओं को खोलकर नई दिशा देता है। जो व्यक्ति अपना स्वयं का प्रकाश निर्मित करना सीख जाता है, वह अपना जीवन सर्वश्रेष्ठ बनाकर दूसरों को राह दीखाता है। जो जितनी जल्दी अपनी राह देखकर अंधेरे में भी उसपर चलना सीख लेता है, उसे अंधेरों की चिन्ता नहीं रहती।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ