
शि.वा.ब्यूरो, मेरठ। प्रोग्राम एंड रिसर्च ऑफिसर रविता ने आशा-एएनएम के साथ सुरक्षित गर्भ समापन पर चर्चा करते हुए बताया कि आज के दौर में गर्भधारण से बचने के हरसंभव उपाय हैं, ताकि किसी अवांछित स्थितियों से बचा जा सके। हर स्त्री को याद रखना चाहिए कि शरीर उसका है और उस पर पहला हक भी उसी का है। लिहाजा अपने स्वास्थ्य का खयाल रखना भी उसका पहला कर्तव्य है। इसके साथ ही एमटीपी एक्ट के बारे में बताते हुए असुरक्षित गर्भपात के नुकसान से भी अवगत कराया।
एमटीपी एक्ट के अनुसार 18 वर्ष की भारतीय स्त्री अकेले और इससे कम उम्र की स्त्री संरक्षक की लिखित अनुमति के साथ इन 12-20 सप्ताह तक की गर्भावस्था में गर्भपात करा सकती है। यदि गर्भावस्था की निरंतरता, गर्भवती महिला के जीवन पर खतरा डालेगी या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर प्रभाव होंगे, (b) यदि गर्भावस्था, बलात्कार का परिणाम है, (c) यदि यह सम्भावना है कि बच्चा (यदि जन्म लेता है) तो वह गंभीर शारीरिक या मानसिक दोष के साथ पैदा होगा, (d) या यदि गर्भनिरोधक विफल रहा है। असुरक्षित गर्भपात के नुकसान भी हो सकते हैं, जैसे- दर्द और अधिक ब्लीडिंग, संक्रमण, जो पेल्विक इन्फ्लेमेटरी डिजीज को जन्म देते हैं, कई मामलों में दोबारा प्रेग्नेंसी की संभावनाएं खत्म हो सकती हैं, तेज बुखार और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं और समस्या बढने पर मरीज की जान पर खतरा भी हो सकता है।

बता दें कि परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता की कमी, हिचक, शर्म, सामाजिक कारणों, पैसे की कमी और अनुपलब्धता के कारण आज भी स्त्रियां असुरक्षित गर्भपात कराने को मजबूर हैं। सरकारी अस्पतालों में लगने वाली लंबी लाइनें, भीड और स्टाफ का संवेदनहीन व्यवहार भी उन्हें घरेलू उपायों, अप्रशिक्षित मिडवाइफ के पास जाने को मजबूर करता है। इसी असमानता के प्रति समानता लाने के उद्देश्य से सामाजिक संस्था ग्रामीण समाज विकास केंद्र के द्वारा ब्लॉक हस्तिनापुर में आशा-एएनएम के साथ एमपीटी एक्ट के तहत सुरक्षित गर्भ समापन को लेकर चर्चा की गई और परिवार नियोजन के साधनों के बारे में दंपति को भी जागरुक किया गया।