डॉ. दशरथ मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
उन्नीस नवमअवतरी,अट्ठारह पैंतीस ।
काशी में बाजे बजे,वीरता जगदीश।।१
मोरोपंत की लाड़ली,भगीरथी का दूध।
साहस बल वीरांगना,बेटी जाइ सपूत।।२
नाना के संग खेलती, काली का अवतार।
बरछी ढाल कृपाण को,बांध कमर हथियार।।३
नाना के संग सीखती, कुश्ती लड़ती साथ।
तीखे वारों झेलती,करती दो दो हाथ।।४
बेटी मनु को ब्याह भयो,खुशियां छाई द्वार।
झांसी की रानी बनी,होती जय जयकार।।५
राजा थोड़े काल में,गए स्वर्ग सिधार।
रानी विधवा जान के, बेरी कीना वार।।६
कफन शीश पर धारके,लई हाथ तलवार।
बेटा पीठ पे बांध के, घोड़ा पे असवार।।७
दुर्गा रूपको धार के, खूब मचाई मार।
मरदानी लक्ष्मी बनी, करती युद्ध संहार।।८
बेटी भारत देश की, मानी नाही हार।
युद्ध क्षेत्र में जायके, खून बहाई धार।।९
अंत समय तक वह लड़ी,बेरी मार तमाम।
बुंदेले हरबोलते , बेटी तेरा नाम।१०
23 गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश