कूर्मि कौशल किशोर आर्य, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मातृ देवो भवः अर्थात मां देवता समान है। भारत में माताओं का स्थान हमेशा से सबसे उपर रहा है और आगे भी रहेगा, क्योंकि माता निर्माता भवती अर्थात मां निर्माण करने वाली होती है। पिता का भी स्थान है, इसीलिए पितृ देवो भवः अर्थात पिता देवता समान है। पर मां का स्थान पिता से हमेशा उपर रहा है। इसमें सच्चाई भी है। हर बच्चे की मां ही उनका निर्माण करती है। हर बच्चे की प्रथम गुरु उनकी मां ही होती है,मां ही अपने बच्चो को प्रथम शिक्षा, संस्कार देकर निखारती और उन्हें जीवन में तरक्की के उंचाईयों को छूने के लिए तैयार करती है। यह ईश्वर द्वारा प्रदत्त हर बच्चों के लिये नायाब, अनूठा तोहफ़ा है। जो सदियों से अनवरत चला आ रहा है। इसीलिए हमारे देश में मां को सबसे ऊंचा दर्जा मिला हुआ है जिस रिश्ते को भारत के हर बच्चें,हर संतानें बखूबी मरते दम तक निभाने की पूरी हर संभव कोशिश करते हैं। वैसे तो भारत में महान माताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है, हर मां अपने आप में पूर्णता को हासिल की रहती है। पर उन माताओं में भी राजमाता जीजाबाई भोसले जो शिवाजी की मां हैं उनकी एक अलग ही पहचान है जो इतिहास के पन्नों में तो अजर अमर तो है ही। हर सदी के लिए हर बच्चे व माताओं के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है जिस रास्तें पर चलकर आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे चरित्रवान, महान पराक्रमी योद्धा बन सकते हैं और अपने परिवार के नाम रौशन करने के साथ साथ समाज और देश के विकास और जनता की सेवा कर सकते हैं।

जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 ई में महाराष्ट्र के सिंधखेड़ में हुआ था। जीजाबाई महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी की माता जी थी। शिवाजी मुगल साम्राज्य के खिलाफ मजबूती से लड़कर उनके दांत खट्टे किये। उनके पिताजी लखुजी जाधवराव शाही दरबारी और प्रमुख मराठा सरदार थे। उनके पिता अहमदनगर में निजामशाही की सेवा करते थे और उन्हें अपने पद और रूतवें पर गर्व था। जबकि उनकी माता का नाम म्हालसा बाई था। जीजाबाई का विवाह बहुत कम उम्र में शाहजी भोसले से हुआ था। शाहजी निजाम के दरबार में राजनयिक पद संभालते थे। वे एक बेहतरीन योद्धा भी थे। शाहजी भोसले के पिता जी का नाम मालोजी सिलेदार था। जो बाद में तरक्की पाकर सरदार मालोजी राव भोसले बन गए। वैसे तो दंपति के वैवाहिक जीवन बहुत सुखद था। लेकिन बाद में उनके परिवार के आपसी टकराहट ने तनाव को जन्म दिया। शाहजी राजे और उनके ससुर जाधव के आपसी रिश्ते बिगड़ गए। हालात इतने बिगड़ चुके थे कि जीजाबाई पूरी तरह टूट गई थी। उन्हें अपने पति और पिता में से एक पक्ष का साथ लेना था। उन्होंने अपने पति का साथ दिया। उनके पिता ने निजामशाही के खिलाफ दिल्ली के मुगलों से दोस्ती कर ली, ताकि वे शाहजी से बदला ले सकें। जीजाबाई अपने पति के साथ शिवनेरी के किले में ही रही। उन्हें इस बात का दुःख था कि उनके पिता और पति दोनों ही किसी और शासक के अधीन काम करते हैं। उनकी इच्छा थी कि मराठों का अपना साम्राज्य स्थापित हो। दोनों की आठ संतानें हुई दो लड़के और छह बेटियाँ। शिवाजी उनके दो बेटों में से एक थे। वह हमेशा भगवान से प्रार्थना करती थी कि उन्हें एक ऐसा बेटा मिले जो मराठा साम्राज्य की नींव रख सकें। उनकी प्रार्थनाओं का जबाब शिवाजी के तौर पर मिला, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की और मुगलों के चुलें हिलाकर रख दी। गुरिल्ला युद्ध नीति शिवाजी का प्रसिद्ध युद्ध है। जिसके सहारे वे कम सेना रहने पर भी मुगल साम्राज्य पर जीत पर जीत हासिल करते रहें। शिवाजी अपनी मां जीजाबाई द्वारा पाई शिक्षा के सहारे अपने तीक्ष्ण बुद्धि विवेक को निखारते रहें जिसके कारण उन्हें सबसे बुद्धिमान मराठा राजा कहा जाता है।

जीजाबाई को एक प्रभावी और प्रतिबद्ध महिला के तौर पर जाना जाता है, जिसके लिए आत्मसम्मान और उनके मूल्य सर्वोपरि हैं। अपनी दूरदर्शिता के लिए प्रसिद्ध जीजाबाई खुद एक योद्धा और प्रशासक थी। उन्होंने बढ़ते शिवाजी में अपने गुणों का न केवल संचार किया, बल्कि निखारा भी। शिवाजी में कर्तव्य भावना, साहस और मुश्किल परिस्थितियों का सामना साहस के साथ करने के लिए मूल्यों का संचार किया। उनकी देख रेख में शिवाजी ने मानवीय रिश्तों की अहमियत समझी, महिलाओं का मान -सम्मान, धार्मिक सहिष्णुता और न्याय के साथ ही अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम,समता-समानता की नीति और महाराष्ट्र की आजादी की इच्छा बलवती हुई। शिवाजी अपनी सभी सफलताओं का श्रेय अपनी मां को देते थे, जो उनके लिए प्रेरणास्रोत थी। उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी अपने बेटे को मराठा साम्राज्य का महानतम शासक बनाने पर लगा दी।
जीजाबाई रानी बनने के बाद पूना चली गई, वहाँ अपने पति की जागीर की देख रेख करने लगी। शिवाजी उनके साथ ही थे। 1666 में शिवाजी आगरा के लिए रवाना हुए। जीजाबाई ने राज्य का कामकाज देखने की जिम्मेदारी ली थी। इसके बाद जीजाबाई के जिंदगी में कई घटनाएं हुई अपने पति के निधन ने उन्हें शोकमग्न कर दिया था। उनके बड़े बेटे संभाजी को अफजल खान ने हत्या कर दी थी, जिसका बदला बाद में शिवाजी ने उससे ले लिया। शिवाजी अपनी माता जीजाबाई के देख रेख में कई यादगार जीत हासिल किये जिनमें तोरणगढ़ किले पर जीत, मुगलों की नजरबंदी से निकलकर भाग निकलना, तानाजी, बाजी प्रभु और सूर्या जी जैसे योद्धाओं के साथ मिलकर शिवाजी कई मोर्चों पर जीत हासिल करते गए। जीजाबाई की मां शिवाजी की सफलता देखकर बहुत गर्वित थी।

जीजाबाई का सपना उस समय पूरा हुआ जब उनकी आंखों के सामने उनके बेटे शिवाजी का राज्याभिषेक समारोह 1674 में सम्पन्न हुआ और वह मराठा साम्राज्य की रखने वाले महाप्रतापी राजा बन गए। हालाकि शिवाजी के राज्यभिषेक करने के लिए महाराष्ट्र के ब्राह्मण जाति ने उन्हें कुणबी मराठा (शुद्र) कहकर इंकार कर दिया था। तब वाराणसी से ब्राह्मण, पंडितों को बुलाया गया वे भी भारी दक्षिणा करीब 50,000 स्वर्ण मुद्राएं लिये जाने पर तैयार हुए थे। बाद में उस वक्त महाराष्ट्र को छोड़कर अन्य राज्यों के पंडित बड़ी संख्या में धन के लालच में शिवाजी के राज्यभिषेक में आ गये थे पर फिर भी छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक उस वाराणसी के पंडित ने अपने हाथ से नहीं करके बाएं पैर के अंगूठे से टिका-चंदन लगाकर किया था। ब्राह्मण पंडित समाज ने कभी छत्रपति शिवाजी महाराज को राजा का दर्जा नहीं दिया। जीजाबाई की मृत्यु शिवाजी के राज्यभिषेक से महज 12 दिन बाद 17 जून 1674 को हो गई। उनकी समाधि राजगढ़ किले के पचाड़ गांव में बनाई गई है। राजमाता जीजाऊ 2011 में बनी फिल्म जीजाबाई के जीवन पर निर्मित है।
संस्थापक राष्ट्रीय समता महासंघ व राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा