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यादों के झरोखे

shikshavahini by shikshavahini
December 4, 2020
in कविता, लाइफ स्टाईल
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यादों के झरोखे


सुनिता ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

याद आता है अक्सर वो वक्त सूहाना ।
वो भोला सा बचपन वो गुजरा जमाना।
वो तितली चिडियां के पिछे दौड जाना।
माँ का मारना फिर आँचल में छूपाना।
दादी-नानी का कहानियां, गुडिया की शादी रचाना ।
दुध मे डुबोकरके रोटी और ताजा मखन खिलाना ।
वो खेल के झगडों में एक-दुजे को चिढाना ।
फिर गले से लगाकर खुलकर खिलखिलाना ।
याद आता है अक्सर वो वक्त सूहाना ।
वो भोला सा बचपन वो गुजरा जमाना।।
वो सिड्डू, वो सतू और गुड-मिश्री खाना ।
वो गिट्टे,गुलेले,पिट्ठू,पेडों से झुला झुलाना ।
गिल्लीडंडा,कपडों को बॉल,लकडी का बल्ला उठाना।
स्कूल न जाना, वो दर्द का झुठा बहाना ।
छुट्टी की खुशी जंगल मे पिकनिक मनाना।
याद आता है अक्सर वो वक्त सूहाना ।
वो भोला सा बचपन वो गुजरा जमाना।।
तीज-त्योहारों की इंतजारी वो गाना बजाना।
वो कपडों की रजाई, दुरदर्शन का जमाना ।
सिमटना अधेरे में, भूतों से अपने पेरों को बचाना ।
शर्माना मेहमानों से, मिठाई के लिए नाच दिखाना ।
याद आता है अक्सर वो वक्त सूहाना ।
वो भोला सा बचपन वो गुजरा जमाना।।
गाये-बकरी चराना वो बेसूरे से गीत गाना ।
इमली की डलियां गाँव की गलिया छोटा सा आशियाना।
विचित्र चित्रकारी होली की पिचकारी वो रंग लगाना ।
गाँव के मेले जलेवी-पुकोडे के ठेले पीं-पीं वाला बाजा बजाना।
वो टाट-पट्टी तख्ती, वो कागज के जहाज उडाना ।
गुरूजी की फटकार रिसेंस का इतजार जोर से गिनती दौहराना।
याद आता है अक्सर वो वक्त सूहाना ।
वो भोला सा बचपन वो गुजरा जमाना।।
आज फिर चाहती हुँ मैं वहीं लौट आना,
छोडकर सारे रंज-ओ-गम चाहती हुँ मुसकूराना ।
आज फिर चाहती हुँ मैं वहीं लौट आना ।।

गाँव काम्बलू, तहसील करसोग, जिला मंडी हिमाचल प्रदेश

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