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सूर्य और दिया

shikshavahini by shikshavahini
November 21, 2020
in लेख, सामाजिक
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सूर्य और दिया

कुँवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

चीन के सम्राट हुआन शी को पढ़ने का बहुत श़ौक था। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका पुस्तकालय और सोने का कमरा दुनिया भर की  किताबों से भरा रहता था। वह अपना अधिकतर समय पढ़ने में ही व्यतीत करते थे। एक दिन सम्राट ने अपने मंत्री शान ची से कहा-अब मैं सत्तर साल का हो चला हूँ, लेकिन पढ़ने की चाहत मन से जाती ही नहीं, पर लगता है अब इस उम्र में पुस्तकों को अधिक समय नहीं दे पाऊँगा।
मंत्री ने जवाब दिया-महराज ! आप इस देश के सूर्य हैं। आपके ज्ञान के प्रकाश से ही इस देश का शासन सफलता पूर्वक चलता रहा है, अगर आप सूर्य बने रहना नहीं चाहते तो कृपया दीपक बन जाइये। सम्राट को मंत्री की बात बहुत बुरी लगी। उन्हें लगा कि मंत्री उन्हें आसमान से जमीन पर पटक रहा है। कहाँ सूर्य कहाँ दीपक ? उन्होंने गुस्से से गम्भीर स्वर में कहा-शान ची! मैं गम्भीर होकर यह बात कह रहा हूँ और तुम उसे मज़ाक में ले रहे हो? मैं तो तुमसे मार्गदर्शन की अपेक्षा कर रहा था। मंत्री शान ची समझ गया कि सम्राट उसकी बात का अर्थ नहीं समझ पाये। शान ची ने हाथ जोड़कर कहा कि राजन !  मेरे कहने का यह मतलब नहीं है। मेरा आशय तो यह था कि जब एक युवा अध्ययन कर रहा होता है तो उसका भविष्य सूर्य के समान होता है, जिसमें अपार सम्भावनायें छिपी होती हैं, लेकिन प्रौढ़वस्था में यही सूर्य दीपक के समान हो जाता है। दीपक में सूर्य जितना प्रकाश तो नहीं होता,  परन्तु उसका उजाला अन्धेरे में  रोशनी दिखाकर हमें भटकने से बचाता है। इसी तरह आप भी कृपया पढ़ने की अपनी रुचि का पूर्ण त्याग न करके, इसमें मन लगाये रखें और प्राप्त अपने अनुभव के प्रकाश से शासन और समाज को राह दिखाते रहें। सम्राट को यह युक्ति उचित लगी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
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