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विडम्बना

shikshavahini by shikshavahini
October 21, 2021
in कविता, लाइफ स्टाईल
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डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

महिलाओं से ही घर है समाज है।
मगर ताना एक ही है यह कि
पुरूष प्रधान समाज है।
परिवार के सभी कार्य स्त्री की सहमति से मगर आरोप
“करेंगे तो अपने मन की”।
पुरूष भी दिन रात मेहनत करें तो
यह उसकी जिम्मेदारी
और औरत काम करेगी तो
कहेगी “नौकरानी बना दिया”।
स्त्री के पास अपने पैसे होते हैं
और होता है स्त्री धन
और पुरुष सब कमाकर भी
उसका अपना कुछ नहीं।
क्योंकि वह समझता है
पैसे पर पहला हक परिवार का है।

विडम्बना यह कि
पुरुष अत्याचारी होता है,
भले ही वह भूखा रहकर
रात दिन मेहनत करें,
धूप में बोझा उठाये
या रात दिन व्यापार में व्यस्त रहे।
बात महिला समानता की
जो अग्रणीय है
उसको किससे समानता चाहिए?
पूजा पाठ शादी विवाह
बिना पत्नी की इच्छा और सहयोग
कभी नहीं सम्भव
घर पर अधिकार
मां का, पत्नी का
और बेटी का।
विचार संघर्ष
मां पत्नी बहु बेटी का
आखिर पुरुष कहां है इस सबमें?
कालांतर से वर्तमान तक
महिला आगे बढ़ी
नये कीर्तिमान गढ़ी
परन्तु
कितनी महिलाओं ने श्रेय दिया
पिता पति भाई या पुरुष मित्र को
मगर
कहा जाता है
सफल व्यक्ति के पीछे
महिला का योगदान।
अगर महिला बात करती है
समानता की
शायद छोड़ना पड़ जाए
वह बहुत कुछ
जो उसे मिलता है
समानता के अधिकारों से अधिक
महिला होने के कारण
और शायद तब यही कहा जायेगा
पुरूष अत्याचारी अहंकारी हैं।

53 महालक्ष्मी एनक्लेव, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश

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