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उच्च और तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी समझदारी का लोप क्यों

shikshavahini by shikshavahini
October 30, 2020
in उत्तराखण्ड़, दिल्ली, पंजाब, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, लाइफ स्टाईल, लेख, सामाजिक, हरियाणा
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अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा, अन्य कूर्मि संगठनों और पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक संगठनों में आपसी सामन्जस्य की अपील

कूर्मि कौशल किशोर आर्य, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 आज देश के 74 वर्षों के आजादी के बाद भी 90% बहुसंख्यक बहुजन मूलनिवासी समाज की स्थिति दयनीय बनी हुई है। कांग्रेस, भाजपा समेत अन्य विभिन्न राजनैतिक दलों ने  देश में इसी बहुसंख्यक समाज के वोट से सरकार बनाई। पर इसी बहुसंख्यक समाज की स्थिति सबसे ज्यादा खराब सदियों पहले भी थी और आज भी खराब ही है। इसका प्रमाण समय समय बताये गये देश विदेश के सरकारी आंकडे हैं। सदियों पहले भी यह बहुसंख्यक समाज ब्राह्मण और सवर्ण जाति के धूर्त लोगों द्वारा विभिन्न आपराधिक अत्याचार और अन्याय के शिकार बनाये गये और आज भी बनाये जा रहे हैं। इस पर किसी नेता, जनप्रतिनिधि, सामाजिक, जातीय संगठनों के पदाधिकारी को चिन्ता नहीं है और आम लोगों को तो इस पर विचार करने के लिए फुर्सत नहीं है। आज वक्त की मांग यही है कि अपने समाज के कूर्मि समेत अन्य पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समाज के ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ क्रांतिकारी साथियों को सामाजिक, जातीय संगठनों और राजनैतिक दलों में आगे बढा़कर उन्हें सत्ता की बागडोर सौंपी जाये तब ही कुछ सकारात्मक और रचनात्मक क्रांतिकारी कार्य धरातल पर किये जा सकते हैं। ध्यान रहें अपना पेट तो पशु, पक्षी और जानवर भी पाल लेते हैं। इस धरती पर चुंकी मनुष्य सबसे बड़ा सामाजिक बुद्धिमान प्राणी है इसीलिए इसकी ज़िम्मेदारी सबसे ज्यादा बनती है जिसे हर हाल में निभाना ही चाहिए। ये दीगर है कि आजकल के मनुष्य उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपनी जवाबदेही को सही तरीके से नहीं निभाकर निजी स्वार्थ को प्राथमिकता दे रहे हैं इसका परिणाम 90% घर-परिवार,समाज और देश के विभिन्न संगठनों,कार्यालयों दलों समेत सभी जगह त्राहीमाम मचा हुआ है और मानवता शर्मसार हो रही है। इससे अच्छा तो पुराने समय के अनपढ़, अशिक्षित लोग थे जो अनपढ़ होकर भी समझदार हुआ करते थे और अपनी जिम्मेदारी बखूबी बिना किसी आपत्ति के आजीवन मरते दम तक निभाते थे। पर आज के भौतिकवादी आर्थिक युग में आधुनिक उच्च और तकनीकी सिर्फ धन कमाने वाले शिक्षा प्राप्त करने के बाद हमारे समाज के लोग पूर्ण रूप से स्वार्थी हो गये। आज किसी घर -परिवार में शांति नहीं है। पिता -बेटा, बेटी -पिता,माता-बेटा -बेटी, पति -पत्नी, भाई -बहन, भाई -भाई, देवर -भाभी, सास -ससुर -बहू समेत हर रिश्ता अपने निजी स्वार्थ को प्राथमिकता देने के कारण कमजोर हो चुका है या फिर हमेशा के लिए टूट चुके हैं। अब ऐसे घर -परिवार के कोई व्यक्ति आखिर किसी सामाजिक जातीय या राजनैतिक संगठन में जाकर क्या, कैसे और क्यों सकारात्मक और रचनात्मक धरातल पर कार्य करेगा यह बिल्कुल स्पष्ट है? दर असल हमारे घर -परिवार और विभिन्न सामाजिक जातीय तथा राजनैतिक संगठनों में जो बिखंठन की स्थिति बन चुकी है इसका सबसे बड़ा कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षानीती ही है।
कहते हैं :-” विद्या ददाती विनयम्” (विद्या,ज्ञान से विनय, नम्रता आती है।) पर यह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। आज की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद विनय, नम्रता नहीं आती है बल्कि अहंकार आते हैं। आज की उच्च शिक्षा के बारे में आप एक तरह  कह सकते हैं :- “विद्या ददाती अहंकारम्”( विद्या,ज्ञान अहंकार देती है।) आज का मनुष्य ज्ञान प्राप्त करने, समझदार, बुद्धिमान बनने के लिए उच्च और तकनीकी शिक्षा प्राप्त नहीं कर रहें हैं बल्कि सिर्फ धन कमाने के लिए और अपनी विलासिता वादी भौतिकवादी सुख -सुविधाओं को पूरा करने के लिए ऐन केन प्रकारेन धन कमाने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करके धन कमाने के मशीन बन रहे हैं। हो सकता है हमारे कुछ मित्रों को शायद बुरा भी लगे पर सच्चाई यही है आप खुद अपने घर -परिवार, समाज और देश में हो रहे तेजी से बदलाव पर गौर कीजिए।
आईए कुछ आवश्यक निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं –
आखिर अनमोल और अनूठी भारतीय परंपरागत संयुक्त परिवार व्यवस्था के टूटने के कारण क्या है?
जिन संतान के जन्म देने और जन्म के बाद माता -पिता और अन्य परिजन खुशी के कारण फूले नहीं समातें वहीं संतान बड़े होने खासकर विवाह के बाद कैसे,क्यों,किसलिये माता -पिता और अपने अन्य परिजनों से पीछा छुडा़ते हैं?
जिन लड़कों ने कभी अपने जन्म देने वाले माता -पिता और अन्य परिजन -अभिभावक के सम्मान नहीं कर पाये, उनके डर में नहीं रह पाये वैसे लड़के विवाह होते ही अपनी पत्नी से कैसे और क्यों भयभीत रहते हैं?
जिन लड़कों के लिए विवाह होने के पहले तक उनके माता -पिता और अब अन्य परिजन भगवान का रूप रहते हैं उन्हीं लड़कों के लिए विवाह होते ही कैसे, क्यों और किसलिए वही माता -पिता और परिजन बेगानें /पराये बना दिये जाते हैं?
जो लड़कियाँ-बेटियाँ अपने माता -पिता और अन्य परिजनों को भगवान की तरह मानती हैं वहीं लड़कियाँ -बेटियाँ विवाह होने के बाद अपने पति को उनके माता -पिता और अन्य परिजनों से कैसे, क्यों और किसलिए अलग कर देती हैं?
जो लड़के, लड़कियाँ, युवा आज जवान, सुन्दर और स्वस्थ हैं वे क्यों अपने बुढ़े माता -पिता और अन्य परिजनों को उनके हाल पर अकेले छोड़ देते हैं और उनकी सेवा, देखभाल नहीं कर पाये जबकि उस बुढ़ापे की आयु में एक दिन सभी को जाना है?
आजकल के संतान यह न्यूटन का 3सरा नियम :-” प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ” ( गेंद को जितना तेजी से हम दीवार पर मारते हैं उतना तेजी, गति से वह गेंद हमारी तरफ वापस आती है।)
“बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से आयेगा? “
हम जो कुछ भी व्यवहार किसी व्यक्ति, पशु, पक्षी और जानवर के साथ करते हैं वही हमें प्रकृति, ब्राह्माण्ड ब्याज के साथ वापस करती है। आदर सम्मान देने पर हमें आदर और सम्मान मिलता है। नफरत, अपमान बांटने पर नफरत और अपमान वापस मिलता है। इसीलिए हमें वही दूसरे लोगों के लिए सोचना, करना चाहिए जो हम खुद के लिए चाहते हैं यही सबसे बड़ा धर्म, परोपकार और मानवता है। यह सब गुण जिस व्यक्ति के अंदर है वही इंसान है,आध्यात्मिक,धार्मिक और सामाजिक है। अगर किसी व्यक्ति का मन मष्तिक और दिल किसी दीन- दुःखी, बीमार और संकट में पड़े हुए व्यक्ति को देखकर मदद करने के लिए हाथ आगे बढ़ते हैं तो वैसे व्यक्ति किसी मंदिर- मस्जिद,गुरूद्वारा-चर्च,बौद्ध मठ -जैन मंदिर जाये या नहीं जाये इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि वह व्यक्ति अपनी मानवता, इंसानियत, धार्मिकता, जवाबदेही बखूबी निभा रहे हैं।
अगर आप मित्रों के अंदर इस तरह के गुण मौजूद हैं तो यह बहुत अच्छी बात है, आप बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं, आप अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा रहे हैं। और अगर आपके अन्दर इस तरह के गुण नहीं है तो इस तरह के गुणों को विकसित और धारण करने के लिए संत कबीर और गौतम बुद्ध के उपदेश नियमित सुबह साम-रात को सुनकर या पढ़कर अपने जीवन में धारण कीजिए और मानव धर्म का कर्तव्य निभाईए। आजकल यह आपके मोबाइल पर यूट्यूब पर सब उपदेश मौजूद है। तो आईए संत कबीर और गौतम बुद्ध के उपदेश और सिद्धांत पर चलकर हमलोग अपने मानव धर्म की जिम्मेदारी को निभायें का संकल्प लेते हैं। हमें विभिन्न सफलता प्राप्त करने के बाद भी आजीवन मरते दम तक ज्ञान प्राप्त करने के लिए, कुछ न कुछ सिखने के लिए दिमाग का दरवाजा खुला रखना चाहिए। हमलोग अगर ऐसा करते हैं तो हर तरह से हर जगह पर हर एक व्यक्ति से गरीब से अमीर से, बच्चें से बुढ़े से, पशु -पक्षी और जानवर से, प्रकृति से पेड़ -पौधों से बहुत कुछ सिखने के लिए मिलते हैं। बस, हमें जिज्ञासु (सिखने के तैयार) बनना पड़ेगा।
संस्थापक राष्ट्रीय समता महासंघ, सह राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा 
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